जिस प्रकार किसी देश, जाति अथवा राष्ट्र का जीवन; उसके प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का समष्टि रूप है और जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति; संसार में अपने जीवन को अपने ही पथ पर ले चलता और आप ही अपना विकास करता है, उसी प्रकार साहित्य में भी समष्टि रूप से सबके योग्य सामग्री और सबके विकास के साधन रहते हैं।