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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

जिस प्रकार आदर्श के शब्द-व्यापार में नितांत अवसरवाद और बेईमानी दिखाई देती है, उसी प्रकार यथार्थ के उद्घाटन के नाम पर भी, अयथार्थ और कृत्रिमता भी सामने आती है।