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गुरु नानक के उद्धरण

जगत एक जंगल के समान है जिसमें आगे-आगे तो आग लगी हुई है जो बड़े-बड़े वृक्षों को जलाती जा रही है, पीछे-पीछे नए-नए कोमल पौधे उगते जा रहे हैं। जिस परमात्मा से यह जगत पैदा होता जाता है, उसी के हुक्म से यह नष्ट भी होता रहता है।