Font by Mehr Nastaliq Web

जयशंकर प्रसाद के उद्धरण

हो पागलपन, भूल हो, दुःख मिले, प्रेम की एक ऋतु होती है। उसमें चूकना, उसमें सोच समझ कर चलना दोनों बराबर हैं।