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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

हिंदी की आत्मपरक कविता व्यक्तिनिष्ठ भले ही हो, उसमें वास्तविक भाव-प्रसंगों की मौलिक विशिष्टता का बहुत कम चित्रण किया गया है।