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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

हमारे आधुनिक साहित्य के क्षेत्र में सर्वप्रथम सामंती संस्काराच्छन्न उच्च-मध्यवर्ग ही सक्रिय हुआ—चाहे वे भारतेंदु हरिश्चंद्र हों, अथवा बिगड़े रईस जयशंकर प्रसाद हों, अथवा आधुनिक परिष्कार-युक्त विलायती शिक्षा-प्राप्त अथवा उससे प्रभावित अन्य कविजन हों।