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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

ज्ञान की भित्ति अगर कठोर न होती, तो वह एक बेतुका स्वप्न बन जाता और आनंद की भित्ति अगर कठोर न होती, तो वह सरासर पागलपन बन जाता।

अनुवाद : अमृत राय