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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

द्विधा-विभाजित मन की प्रक्रिया में तटस्थता नामक जो एक आत्म-स्थिति पैदा हो जाती है, वह तटस्थता नामक आत्म-स्थिति एक क्रियावान शक्ति है; और क्रिया में गतिमान होने के लिए ही उपस्थित रहती है।