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भवभूति के उद्धरण

दृढ़ व्याकुलता से युक्त हृदय विदीर्ण होता है, लेकिन दो टुकड़ों में विभक्त नहीं होता। शोक से व्याकुल शरीर मोह को धारण करता है, लेकिन चैतन्य को नहीं छोड़ता। अंतःकरण का संताप शरीर को जलाता है, लेकिन भस्म नहीं करता, उसी तरह हृदय आदि मर्मस्थल का छेदन करने वाला भाग्य का प्रहार करता है, लेकिन जीवन को नष्ट नहीं करता है।