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शूद्रक के उद्धरण

दैववश मनुष्य के भाग्य की जब होनावस्था (दरिद्रता) आ जाती है तब उसके मित्र भी शत्रु हो जाते हैं, यहाँ तक कि चिरकाल से अनुरक्त जन भी विरक्त हो जाता है।