कुँवर नारायण के उद्धरण
साहित्य को न केवल सामाजिक होना है, बल्कि विवेकशील ढंग से सामाजिक होना है, यह बात आधुनिक नहीं लगती कि साहित्यकार अपने आपको सुशिक्षित रखने की ज़िम्मेदारी से बचे।
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