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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

भावना स्वयं हृदय में संचित संवेदनात्मक विशिष्ट-विशिष्ट प्रतिक्रियाओं का सामान्यीकृत रूप है, कल्पना उसे मूर्तिमान करती है।