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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

भाव, विषय, तत्त्व साधारण मनुष्यों के होते हैं; उन्हें अगर एक आदमी वाणी न दे, तो आगे-पीछे दूसरा कोई आदमी वाणी देगा। लेकिन रचना पूरी तरह लेखक की अपनी होती है। वह जैसी एक आदमी की होगी, दूसरे आदमी की न होगी। इसालिए रचना में ही लेखक सच्चे अर्थों में जीवित रहता है—भाव में नहीं, विषय में नहीं।

अनुवाद : अमृत राय