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श्यामसुंदर दास के उद्धरण

भाषा की लक्षणा, व्यंजना आदि शक्तियों को उद्बुद्ध और पुष्ट करके उन भावों को रसमय बना देना—यह साहित्य के कला-पक्ष का काम है।