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मैनेजर पांडेय के उद्धरण

भक्त कवियों की दृष्टि में मानुष-सत्य के ऊपर कुछ भी नहीं है—न कुल, न जाति, न धर्म, न संप्रदाय, न स्त्री-पुरुष का भेद, न किसी शास्त्र का भय और न लोक का भ्रम।