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प्रेमचंद के उद्धरण

और वह नदी! वह लहराता हुआ नीला मैदान! वह प्यासों की प्यास बुझाने वाली! वह निराशों की आशा! वह वरदानों की देवी! वह पवित्रता का स्रोत! वह मुट्ठीभर ख़ाक को आश्रय देने वाली गंगा हँसती-मुस्कराती थी और उछलती थी।

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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