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कृष्ण कुमार के उद्धरण

आदमी का जीवन-काल न यह समझने के लिए पर्याप्त है कि बात कैसे बिगड़ती है, न यह देख पाने के लिए कि बिगड़ी हुई बात दुबारा कैसे बनने लगती है।