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यारी साहब

रीतिकालीन निर्गुण संत। वर्णन शैली रोचक और भाषा में अरबी-फ़ारसी का प्रयोग। बावरी संप्रदाय से संबद्ध।

रीतिकालीन निर्गुण संत। वर्णन शैली रोचक और भाषा में अरबी-फ़ारसी का प्रयोग। बावरी संप्रदाय से संबद्ध।

यारी साहब की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 10

आठ पहर निरखत रहौ, सन्मुख सदा हज़ूर।

कह यारी घरहीं मिलै, काहे जाते दूर॥

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बाजत अनहद बाँसुरी, तिरबेनी के तीर।

राग छतीसो होइ रहे, गरजत गगन गंभीर॥

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तारनहार समर्थ है, अवर दूजा कोय।

कह यारी सत्तगुरु मिलै, अचल अरु अम्मर होय॥

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दछिन दिसा मोर नइहरो, उत्तर पंथ ससुराल।

मानसरोवर ताल है, तहँ कामिनि करत सिंगार॥

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रूप रेख बरनौं कहा, कोटि सूर परगास।

अगम अगोचर रूप है, पावै हरि को दास॥

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सबद 19

कवित्त 1

 

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