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विनायकराव

विनायकराव के दोहे

कविगण कविता करहि जो, ज्ञानवान रस लेइ।

जन्म देइ पितु पुत्र को, पुत्रि पतिहि सुख देइ॥

नहि सरहिये स्वर्ण गिरि, जहँ तरु तरुहि रहाहि।

धन्य मलयगिरि जहँ सकल, तरु चंदन हुई जाहि॥

कन्या सुंदर वर चहै, मानु चहै धनवान।

पिता कीर्त्तियुत स्वजन कुल, अपर लोग मिष्टान॥

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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