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संत लालदास

1540 - 1648 | अलवर, राजस्थान

भक्तिकाल। संत गद्दन चिश्ती के शिष्य। लालदासी संप्रदाय के प्रवर्तक। मेवात क्षेत्र में धार्मिक पुनर्जागरण के पुरोधा।

भक्तिकाल। संत गद्दन चिश्ती के शिष्य। लालदासी संप्रदाय के प्रवर्तक। मेवात क्षेत्र में धार्मिक पुनर्जागरण के पुरोधा।

संत लालदास के दोहे

थोड़ा जीवण कारनै, मत कोई करो अनीत।

वोला जौ गल जावोगे, जो बालु की भीत॥

नेकी जबलग कीजिये, जबलग पार वसाय।

नेकी तणा विसायता, जै सिर जाय तो जाय॥

चकवा चकवी दो जणा, इन मत मारो कोय।

ये मारे करतार नै, रैन विछोहा होय॥

मैमंता मन मारीये, नहना कर कर पीस।

तौ सुष पावै सुंदरी, पदम झलैकै सीस॥

दीपक जोरा तेल भर, वाती करी सुधार।

पूरा किया वीसाहना, वहोर आवै बाट॥

मन गया तो जान दे, पग मत देवो जानि।

कतवारी के सुत जौ, फेर मीलोगे आनि॥

क्या घर का क्या वाहला, डोरी लागी राम।

आपनी आपनी जौम मै, बुडी जाय जीहान॥

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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