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रीतिबद्ध कवि। दोहों में चमत्कार और उक्ति-वैचित्र्य के लिए स्मरणीय।

रीतिबद्ध कवि। दोहों में चमत्कार और उक्ति-वैचित्र्य के लिए स्मरणीय।

रसलीन का परिचय

मूल नाम : सैयद गुलामनबी

जन्म :बिलग्राम, उत्तर प्रदेश

रसलीन, सैयद गुलाम नबी का उपनाम है। ये हरदोई जिला के प्रसिद्ध कस्बा बिलग्राम के रहने वाले थे। मीर अब्दुल जलीम 'बिलग्रामी' इनके काव्य-गुरु थे। इनका जन्म वर्ष सन् 1689 ई. में अनुमानित किया जाता है। ये केवल कवि नहीं थे, वरन् एक सुयोग्य सैनिक थे। ये नवाब सफ़दरगंज की ओर से पठानों के विरुद्ध युद्ध करते हुए आगरा के समीप सन् 1750 ई. में मारे गए। शिवसिंह ने इन्हें अरबी-फ़ारसी का आलिम फ़ाज़िल और भाषा-कविता में अत्यंत निपुण बताया है। एक प्रसिद्ध दोहा जिसे लोग बिहारी का समझा करते हैं, रसलीन का ही है—

'अमिय, हलाहल, मद भरे, सेत, स्याम, रतनार।
जियत, मरत, झुकि-झुकि परत, जेहि चितवत इक बार॥'

इनके लिखे दो ग्रंथ अत्यंत प्रसिद्ध हैं : 'अंगदर्पण' और 'रस प्रबोध'। 'अंगदर्पण' सन् 1737 ई. में रचित 180 दोहों की रचना है। यह नखशिख संबंधी ग्रंथ है। भाषा तथा शैली की दृष्टि से यह प्रौढ़ और सुकुमार रचना है। इसमें नायिका के अंग-प्रत्यंगों, आभूषणों, भंगिमाओं तथा चेष्टाओं तक का वर्णन सौंदर्य के साथ किया गया है। रसलीन की रचना सिर्फ़ दोहों में ही मिलती हैं। रसलीन ने अपने को दोहों की रचना तक ही सीमित इसलिए रखा क्योंकि नाद-सौंदर्य की अपेक्षा इनका ध्यान चमत्कार और उक्ति वैचित्र्य की ओर अधिक था। जिन दोहों में भावात्मक सौंदर्य व्यंजित हुआ है, वे बहुत मार्मिक हैं। अंगदर्पण में नख-शिख का वर्णन बहुत ही अच्छे ढंग से किया गया है। उपमा तथा उत्प्रेक्षा का आश्रय लेकर कवि ने उक्ति-वैचित्र्य और कल्पना की कला भी बड़े अच्छे ढंग से प्रकट की है। सूक्तियों के चमत्कार के लिये यह ग्रंथ काव्य-रसिकों में बराबर विख्यात चला आया है।

दूसरा ग्रंथ 'रस प्रबोध', जिसमें 1127 दोहे हैं और जिसकी रचना सन् 1741 ई. में हुई है; रस-निरूपण, नायिकाभेद, षट-ऋतु, बारहमासा आदि प्रसंगों का अच्छा ग्रंथ है। इस ग्रंथ के लिए रसलीन ने कहा है कि इस छोटे से ग्रंथ को पढ़ लेने पर रस का विषय जानने के लिए और ग्रंथ पढ़ने की आवश्यकता न रहेगी। 'रस प्रबोध' में उदाहरण बड़े रसपूर्ण हैं, पर शास्त्रीय विवेचन का अभाव है। इसलिए यह ग्रंथ 'अंगदर्पण' के समान प्रसिद्ध न हुआ।

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