राशि पांडेय के बेला
शहर नक़्शे से नहीं, यात्राओं से पहचाने जाते हैं
जाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा था। घर में ही एक कोना दे दिया गया, जैसे किसी मुट्ठीभर उम्मीद को दरकिनार कर दिया गया हो। सोफ़ा बिस्तर बन गया, जो कमरा कभी साझा हँसी और कहानियों से भरा होता था, वह अब