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निर्मला गर्ग

1955 | दरभंगा, बिहार

नवें दशक की कवयित्री। जनवादी संवेदना और सरोकारों के लिए उल्लेखनीय।

नवें दशक की कवयित्री। जनवादी संवेदना और सरोकारों के लिए उल्लेखनीय।

निर्मला गर्ग का परिचय

जन्म : 21/06/1955 | दरभंगा, बिहार

निर्मला गर्ग का जन्म 21 जून 1955 को दरभंगा, बिहार में हुआ। दरभंगा में आरंभिक शिक्षा के बाद आगे की उच्च शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से वाणिज्य विषय में पूरी की। उन्होंने रूसी भाषा में डिप्लोमा भी किया है। पहले प्रगतिशील लेखक संघ, फिर जनवादी लेखक संघ से लंबे समय तक संबद्ध रहीं। सफ़दर हाशमी की निर्मम हत्या के तुरंत बाद जन नाट्य मंच, गाज़ियाबाद के गठन के साथ 20-22 प्रदर्शन में शिरकत किया। 

हिंदी के कविता परिसर में प्रवेश ‘यह हरा गलीचा’ काव्य-संग्रह के साथ वर्ष 1992 में हुआ। दूसरा कविता-संग्रह ‘कबाड़ी का तराज़ू’ वर्ष 2000 में और तीसरा कविता-संग्रह ‘सफ़र के लिए रसद’ 2007 में प्रकाशित हुआ। उनका नवीनतम संग्रह ‘दिसंबर का महीना मुझे आख़िरी नहीं लगता’ वर्ष 2014 में प्रकाशित हुआ है। 

उनकी कविताओं का केंद्रीय सरोकार अपने समय का समाज है जिसमें विद्यमान विसंगतियाँ सतत संवाद की माँग रखती हैं। वह इसी माँग से प्रेरित रहते हुए अपनी गहन संवेदनशीलता और समझ के साथ संवाद में प्रवेश करती हैं। सहजता कविता में बरता हुआ उनका विशेष गुण है। उनकी कविता स्त्री, नागरिक और मनुष्य को साथ साधते हुए दिनमान के सारे छोटे-बड़े मुद्दों से बहसतलब बनी रहती है।

उन्हें ‘कबाड़ी का तराजू’ संग्रह के लिए हिंदी अकादमी, दिल्ली के कृति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

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