नंददुलारे वाजपेयी का आलोचनात्मक लेखन
प्रयोगवादी रचनाएँ
पिछले कुछ समय से हिंदी काव्य-क्षेत्र में कुछ ऐसी रचनाएँ हो रही हैं, जिन्हें किसी सुलभ शब्द के अभाव में, प्रयोगवादी रचना कहा जा सकता है। इन रचनाओं को यह नाम स्वयं इनके रचयिताओं ने दिया है, अतएव इनके लिए किसी दूसरे नाम की खोज करना हमारे लिए आवश्यक नहीं
छायावादी काव्य-दृष्टि
नई कविता की भाँति नई आलोचना भी द्विवेदी युग से छायावाद-युग में आकर नया रूप-रंग धारण कर चुकी है। उसकी वेश-भूषा में ही नहीं, आकृति प्रकृति में भी अंतर आ गया है। उसकी नई शैली और नवीन मान्यताएँ हो गई हैं। अपने नए व्यक्तित्व के अनुकूल वह अपना स्वतंत्र सैद्धांतिक
साहित्य का प्रयोजन—आत्मानुभूति
साहित्य का प्रयोजन आत्मानुभूति है, यहाँ 'प्रयोजन' और 'आत्मानुभूति' शब्दों पर पहले विचार कर लेना आवश्यक है। 'प्रयोजन' शब्द कभी निमित्त के अर्थ में आता है, और कभी उद्देश्य के अर्थ में व्यवहृत होता है। इससे कभी हेतु या कारण का अर्थ लिया जाता है, और कभी