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मीतादास

1690 - 1768 | फ़तेहपुर, उत्तर प्रदेश

अलक्षित संत कवि। कबीर को आदर्श मानते हुए साधना के गूढ़ भावों को सरल रूप में प्रस्तुत किया।

अलक्षित संत कवि। कबीर को आदर्श मानते हुए साधना के गूढ़ भावों को सरल रूप में प्रस्तुत किया।

मीतादास की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 23

मुख ब्राह्मण कर क्षत्रिय, पेट वैश्य पग शुद्र।

अंग सबही जनन में, को ब्राह्मण को शुद्र॥

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थिरे ते कांदी करे, ते नल मलिन बेकार।

मीता कबहु बैठई, चरि विमखन के द्वार॥

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बरन अठारह वहाँ नहीं, जहाँ सांचा दरबार।

मीता वहाँ सबुही ह्वै, झूठी कथै लबार॥

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मन एकु सो फंस रहा, कोह नारि कोह दाम।

दूजा कहंवा माइये, जोन मिलावै राम॥

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मीता के मारग चलै, कबीर सरीखा होय।

मीत कबीरा एक है, कहबै के हैं दोय॥

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सबद 4

 

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