मन्नू भंडारी की कहानियाँ
एक प्लेट सैलाब
मई की साँझ! साढ़े छह बजे हैं। कुछ देर पहले जो धूप चारों ओर फैली पड़ी थी, अब फीकी पड़कर इमारतों की छतों पर सिमट आई है, मानो निरंतर समाप्त होते अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए उसने कसकर कगारों को पकड़ लिया हो। आग बरसाती हुई हवा धूप और पसीने की बदबू
त्रिशंकु
“घर की चारदीवारी आदमी को सुरक्षा देती है पर साथ ही उसे एक सीमा में बाँधती भी है। स्कूल-कॉलेज जहाँ व्यक्ति के मस्तिष्क का विकास करते हैं, वहीं नियम-क़ायदे और अनुशासन के नाम पर उसके व्यक्तित्व को कुंठित भी करते हैं—बात यह है बंधु कि हर बात का विरोध उसके
स्त्री सुबोधिनी
प्यारी बहनो, न तो मैं कोई विचारक हूँ, न प्रचारक, न लेखक, न शिक्षक। मैं तो एक बड़ी मामूली-सी नौकरीपेशा घरेलू औरत हूँ, जो अपनी उम्र के बयालीस साल पार कर चुकी है, लेकिन इस उम्र तक आते-आते जिन स्थितियों से मैं गुज़री हूँ, जैसा अहम् अनुभव मैंने पाया...चाहती