महादेवी वर्मा के निबंध
साहित्यकार व्यक्ति और समष्टि
सृजन की दृष्टि से व्यक्तिगत होने पर भी साहित्य अपने रचनाकार के अनुरंजन मात्र तक सीमित नहीं रहता। जिस प्रकार भाषा में वक्ता और श्रोता दोनों की स्थिति स्वयंसिद्ध है, उसी प्रकार साहित्य में दूसरा पक्ष अंतर्निहित है। प्रत्येक युग और प्रत्येक देश में साहित्य
संस्कृति का प्रश्न
दीर्घनिकाय में मनुष्य के क्रमश: उन्नति और अवनति की ओर जाने के संबंध में कहा हुआ यह वाक्य आज की स्थिति से विचित्र साम्य रखता है– 'उन लोगों में एक दूसरे के प्रति तीव्र क्रोध, तीव्र प्रतिहिंसा, तीव्र दुर्भावना और तीव्र हिंसा का भाव उत्पन्न होगा। माता
युग-बोध, राष्ट्र-निर्माण और महिला-लेखिकाओं का दायित्व
हम सभी सरस्वती के मंदिर के पुजारी हैं, देवता का महत्त्व ही हमारी आस्था को महत्त्व देता है। हमारा अभिनंदन-वंदन वस्तुतः एक ही गंतव्य की ओर जाने वाले पथिकों का परस्पर कुशल-क्षेम पूछना है। मार्ग में चलते हुए जैसे पूछ लेते हैं—तुम्हारा संबंध तो नहीं समाप्त