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जैनेंद्र कुमार

1905 - 1988

प्रेमचंदोत्तर युग के समादृत कथाकार, उपन्यासकार और निबंधकार। गद्य में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक।

प्रेमचंदोत्तर युग के समादृत कथाकार, उपन्यासकार और निबंधकार। गद्य में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक।

जैनेंद्र कुमार का परिचय

जन्म : 01/01/1905

निधन : 01/12/1988

समादृत मनोवैज्ञानिक कथाकार-उपन्यासकार जैनेंद्र कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के कौड़िया गंज में 2 जनवरी 1905 में हुआ। उनके बचपन का नाम आनंदीलाल था। साहित्य सृजन के लिए उन्होंने जैनेंद्र कुमार नाम चुना और उसी नाम से साहित्य-संसार में प्रसिद्ध हुए। उनकी बाल्यावस्था में ही पिता की मृत्यु हो गई थी और उनके लालन-पालन में उनकी माँ रमा देवी का साथ उनके मामा भगवान दीन ने दिया। आरंभिक शिक्षा-दीक्षा के बाद मैट्रिक की परीक्षा उन्होंने पंजाब से पास की और आगे की पढ़ाई के लिए बनारस गए। वह तब किशोर उम्र में ही थे जब 1921 में असहयोग आंदोलन के प्रभाव से उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। वह कांग्रेस के सक्रिय सदस्य बन गए और स्वतंत्रता आंदोलन संबंधी गतिविधियों के लिए जेल भी गए।

उनकी पहली कहानी 1928 में ‘विशाल भारत’ में प्रकाशित हुई जिस पर उन्हें 4 रुपया पारिश्रमिक भी प्राप्त हुआ। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा और वह और गंभीरता से साहित्य-साधना में जुट गए। सन् 1929 में उनका पहला उपन्यास ‘परख’ प्रकाशित हुआ और साहित्य जगत में उनकी जगह बनने लगी। उन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, वैचारिक गद्य, आलोचना, ललित निबंध, यात्रा साहित्य, बाल साहित्य आदि गद्य की विभिन्न विधाओं में योगदान किया है। 

जैनेंद्र कुमार हिंदी के महत्त्वपूर्ण कथाकार और निबंध लेखक हैं। उनके कहानी लेखन का आरंभ भी प्रेमचंद युग में ही हुआ था लेकिन उनके विषय-वस्तु और पात्र प्रेमचंद से पर्याप्त भिन्न थे। सामाजिक समस्याओं के बजाय व्यक्ति चरित्रों पर उन्होंने अधिक ध्यान केंद्रित किया। उपन्यासकार के रूप में प्रायः उनका उल्लेख अज्ञेय के साथ किया जाता है। वह मनोवैज्ञानिक उपन्यासकार कहे जाते हैं। उनके उपन्यासों में व्यक्ति का जीवन अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। वह अपने पात्र का चरित्र-चित्रण करने, उसके मनोभावों को पकड़ने और उसके मनोविज्ञान को समझने में रुचि प्रदर्शित करते हैं। चिंतन के स्तर पर वह मनोविज्ञान के अतिरिक्त जैन धर्म और गाँधीवाद से प्रेरित थे। उनके साहित्य को उनके जीवन के संदर्भ में भी देखा समझा गया है। वह निबंध लेखन की ओर भी प्रवृत्त रहे जहाँ उन्होंने अपने चिंतन और साहित्यिक-सामाजिक धारणाओं की अभिव्यक्ति की है। उन्होंने अनुवाद विधा में भी योगदान किया है।

जैनेंद्र को हिंदी गद्य साहित्य में दर्शन, मनोविज्ञान, अध्यात्म और भाव-निष्ठा को कला-चेतना के साथ संपृक्त करने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने जीवन की बाह्य वास्तविकताओं से अधिक महत्त्व व्यक्ति के आंतरिक संघर्ष को दिया है। मनोविज्ञान उनके लिए साध्य नहीं बल्कि साधन प्रतीत होता है। वह जैन-तर्क-पद्धति स्यादवाद से मनोवैज्ञानिक आधार ग्रहण करते हैं। 

 
जैनेंद्र कुमार को साहित्य अकादेमी पुरस्कार सहित अनेक संस्थाओं के साहित्यिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके साहित्यिक योगदान को देखते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय और आगरा विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट् की मानद उपाधि प्रदान की। भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। 

प्रमुख कृतियाँ

उपन्यास : परख, सुनीता, त्याग-पत्र, कल्याणी, सुखदा, विवर्त, व्यतीत, जयवर्द्धन, मुक्तिबोध, अनंतर, अनामस्वामी, दशार्क।

कहानी-संग्रह : फाँसी, वातायन, नीलम देश की राजकन्या, एक रात, दो चिड़ियाँ, पाजेब, जयसंधि, जैनेंद्र की कहानियाँ (सात खंडों में)।

निबंध-संग्रह : प्रस्तुत प्रश्न, जड़ की बात, पूर्वोदय, साहित्य का श्रेय और प्रेय, मंथन, सोच विचार, ये और वे, इतस्ततः, समय और हम, परिप्रेक्ष्य, साहित्य और संस्कृति। 

संपादन : साहित्य चयन, विचार वल्लरी।

अनुवाद : मंदालिनी, प्रेम में भगवान, पाप और प्रकाश।

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