noImage

गुरु अमरदास

1479 - 1574 | अमृतसर, पंजाब

सिक्ख धर्म के तीसरे गुरु और आध्यात्मिक संत। जातिगत भेदभाव को समाप्त करने और आपसी सौहार्द स्थापित करने के लिए 'लंगर परंपरा' शुरू कर 'पहले पंगत फिर संगत' पर ज़ोर दिया।

सिक्ख धर्म के तीसरे गुरु और आध्यात्मिक संत। जातिगत भेदभाव को समाप्त करने और आपसी सौहार्द स्थापित करने के लिए 'लंगर परंपरा' शुरू कर 'पहले पंगत फिर संगत' पर ज़ोर दिया।

गुरु अमरदास की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 11

आपै नो आपु मिली रहिआ, हउमै दुविधा मारि।

नानक नामि रते दुतरु तरे, भउ जलु विषमु संसारु॥

  • शेयर

विसना कदे चुकई, जलदी करे पुकार।

नानक बिनु नावै कुरूपि कुसोहणी, परहरि छोड़ी भतारि॥

  • शेयर

सबदि रती सोहागणी, सतिगुर कै भाइ पिआरि।

सदा रावे पिवु आपणा, सवै प्रेमि पिआरि॥

  • शेयर

आसा मनसा जगि मोहणी, जिनि मोहिआ संसारू।

सभु को जमके चीरे बिचि है, जेता सभु आकारु॥

  • शेयर

हसा वेषि तरंदिआ, वगांभि आया चाउ।

डूबि मुए वग वपुड़े, सिरु तलि उपरि पाउ॥

  • शेयर

सबद 10

Recitation

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

पास यहाँ से प्राप्त कीजिए