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भामह

भामह की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 4

वह शब्द नहीं, वह अर्थ नहीं, वह न्याय नहीं, वह कला नहीं, जो काव्य का अंग बनती हो। कवि का दायित्व कितना बड़ा है!

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सत्काव्य की रचना धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में प्रवीणता, कलाओं में प्रवीणता, आनंद यश प्रदान करती है।

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लक्षण-रहित काव्य से कुपुत्र के समान ही निंदा होती है।

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शब्द और अर्थ मिलकर काव्य कहलाते हैं और उसके दो भेद होते हैं गद्य और पद्य।

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