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रूस के पत्र (ग्यारह)

roos ke patr (gyarah)

रवींद्रनाथ टैगोर

रवींद्रनाथ टैगोर

रूस के पत्र (ग्यारह)

रवींद्रनाथ टैगोर

और अधिकरवींद्रनाथ टैगोर

     

    पिछड़ी हुई जातियों की शिक्षा के लिए सोवियत रूस में कैसा उद्‌द्योग हो रहा है—यह बात तुम्हें पहले लिख चुका हूँ। आज दो-एक दृष्टांत देता हूँ।

    यूराल पर्वत के दक्षिण में बास्किरों का निवास है। जार के ज़माने में वहाँ की साधारण प्रजा की दशा हमारे ही देश के समान थी। वे जीवन-भर चिर उपवास के किनारे से ही चला करते थे। तनख़्वाह उन्हें बहुत कम मिलती थी। किसी कारख़ाने में ऊँचे पद पर काम करने लायक शिक्षा या योग्यता उनमें नहीं थी, इसलिए परिस्थिति के कारण उन्हें सिर्फ़ मज़दूरी का ही काम करना पड़ता था। क्रांति के बाद इस देश की प्रजा को स्वतंत्र शासन के अधिकार देने का प्रयत्न शुरू हुआ।

    पहले जिन पर भार पड़ा था, वे थे पहले जमाने के धनी ज़मींदार-किसान, धर्मयाजक पढ़े-लिखे लोग, वर्तमान में हम जिन्हें शिक्षित कहते हैं। सर्वसाधारण को इससे कुछ सहूलियत नहीं हुई। और उसपर ठीक उसी समय कलचाक की सेना ने उपद्रव शुरू कर दिया। वह थी जार के ज़माने की पक्षपातिनी, उसके साथ था शक्तिशाली बाहरी शत्रुओं का उत्साह और सहानुभूति। सोवियतों ने किसी तरह उन्हें भगाया भी, तो फिर आ गया दुर्भिक्ष। खेती-बारी की व्यवस्था सब नष्ट हो गई।

    सन् 1922 से सोवियत सरकार का काम ठीक तरह से चालू हो सका है। तब से देश में शिक्षा-प्रचार और अर्थोत्पत्ति की व्यवस्था तेज़ी के साथ होने लगी। इससे पहले बास्किरिया में लगभग सर्वव्यापी निरक्षरता थी। इन्हीं कई वर्षों में यहाँ आठ तो नार्मल स्कूल, पाँच कृषि-विद्यालय, एक डॉक्टरी शिक्षालय तथा अर्थकरी विद्या सिखाने के लिए दो, कल-कारख़ाने के काम में हाथ साधने के लिए सत्तरह, प्राथमिक शिक्षा के लिए 2495 और मध्य प्राथमिक शिक्षा के लिए 87 स्कूल गए। आज बास्किरिया में दो सरकारी थिएटर हैं, दो म्यूज़ियम हैं, चौदह नगर पुस्तकालय हैं, 122 ग्राम्य वाचनालय हैं, तीस सिनेमाघर शहर में और 46 ग्रामों में हैं। किसान किसी काम से शहर में आएँ तो उनके ठहरने के लिए अनेक मकान हैं। 891 खेल-कूद के और विश्राम के स्थान हैं। इसके अलावा हज़ारों की संख्या में मज़दूरों और किसानों के लिए रेडियो यंत्र हैं। बीरभूमि ज़िले के लोग बास्किरों की अपेक्षा निःसंदेह स्वभावतः उन्नत श्रेणी के जीव हैं। बास्किरिया और बीरभूमि शिक्षा और आराम की व्यवस्था की तुलना कर देखो। साथ ही दोनों की डिफ़िकल्टीज की तुलना भी करनी चाहिए।

    सोवियत संघ में जितनी भी रिपब्लिकें हुई हैं, उन सबमें तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान ही नई हैं। उनकी स्थापना हुई है 1924 के अक्टूबर में अर्थात् उनकी उम्र अभी छह वर्ष से भी कम है। तुर्कमेनिस्तान की जनसंख्या कुल मिला कर साढ़े दस लाख है, जिसमें नौ लाख आदमी खेती करते हैं। परंतु अनेक कारणों से खेतों की अवस्था संतोषजनक नहीं है। पशु-पालन का धंधा भी ऐसा ही है।

    ऐसे देश को बचाने का उपाय है कारख़ाने का काम खोलना, जिसे इंडस्ट्रिलाइज़ेशन करते हैं। विदेशी या देशी महाजनों की जेब भरने के लिए कारख़ाने की स्कीम नहीं है, यहाँ के कारखानों का स्वत्व है सर्वसाधारण का। इसी छोटे-से अरसे में एक सूत की मिल और रेशम का कारख़ाना खोला गया है। आशकाबाद शहर में एक बिजली-घर (पावरहाउस) स्थापित किया गया है और अन्य शहरों में भी उ‌द्योग चल रहा है। यंत्र चलाने वाले मज़दूरों की ज़रूरत है, और इसके लिए काफ़ी संख्या में तुर्कमेनी युवकों को मध्य एशिया के बड़े-बड़े कारख़ानों में काम सिखाने के लिए भेजा जाता है। हमारे देश में युवकों के लिए विदेशियों से पारिचालित कारख़ानों में काम सीखने का मौक़ा पाना कितना दुःसाध्य है, इस बात को सभी जानते हैं।

    बुलेटिन में लिखा है—तुर्कमेनिस्तान में शिक्षा की व्यवस्था करना इतना कठिन है कि उसकी तुलना शायद अन्यत्र कहीं ढूँढ़े नहीं मिलेगी। बस्तियाँ बहुत कम और दूर-दूर हैं, सड़कों की कमी, पानी का अभाव और बस्तियों के बीच-बीच में बड़ी-बड़ी मरुभूमि—इन सब कारणों से लोगों की आर्थिक अवस्था बहुत ही शोचनीय है।

    फ़िलहाल शिक्षा का ख़र्च प्रति व्यक्ति पाँच रूबल पड़ता है। इस देश की कुल प्रजा-संख्या में एक-चौथाई आदमी यायावर या बंजारे हैं, उनके लिए प्राथमिक पाठशालाओं के साथ-साथ बोर्डिंग स्कूल भी खोले गए हैं, और ऐसे स्थानों पर जहाँ कुआँ या बावड़ी आदि के आसपास बहुत-से परिवार इकट्ठा होते हैं। विद्यार्थियों के लिए अख़बार भी प्रकाशित किए जाते हैं।

    मॉस्को शहर में नदी किनारे पुराने ज़माने के एक उ‌द्यान-वेष्ठित सुंदर प्रासाद में तुर्कमेनों के लिए शिक्षक तैयार करने के लिए एक विद्या-भवन तुर्कमेन पीपुल्स होम ऑफ़ एजूकेशन स्थापित हुआ। वहाँ उस समय एक सौ तुर्कमेन छात्र शिक्षा पा रहे हैं, जिनकी उम्र है बारह या तेरह साल की। इस विद्या-भवन की व्यवस्था स्वायत्त शासन नीति के अनुसार होती है। इसकी व्यवस्था में कई कार्य-विभाग हैं जैसे, स्वास्थ्य विभाग, गार्हस्थ विभाग, क्लास कमेटी आदि। स्वास्थ्य विभाग देखता है कि सब कमरों, क्लासों और आँगन वग़ैरह में सफ़ाई रहती है या नहीं। कोई लड़का यदि बीमार पड़ जाए—फिर चाहे वह मामूली से मामूली बीमारी क्यों न हो तो—उसके लिए डॉक्टर बुलाने और इलाज कराने का भार इसी विभाग पर है। गार्हस्थ विभाग के अंतर्गत बहुत-से उपविभाग हैं। इस विभाग का कर्तव्य है कि वह इस बात की देखभाल रखे कि लड़के साफ़-सुधरे रहते हैं या नहीं। क्लास में पढ़ते समय लड़कों के आचरण पर दृष्टि रखना क्लास कमेटी का काम है। प्रत्येक विभाग से प्रतिनिधि चुनकर अध्यक्ष सभा बनाई जाती है। इस अध्यक्ष सभा के प्रतिनिधियों को स्कूल काउंसिल में वोट देने का अधिकार प्राप्त है। लड़कों का आपस में या और किसी के साथ झगड़ा-टंटा हो जाए, तो अध्यक्ष सभा उसकी जाँच करती है, और यह सभा जो फ़ैसला देती है, उसे मानने के लिए सब छात्र बाध्य हैं।

    इस विद्या भवन के साथ एक क्लब है। वहाँ अक्सर बहुत-से लड़के मिल कर अपनी भाषा में नाटक खेलते और नाचते-गाते हैं। क्लब का अपना एक सिनेमा भी है, जिसमें लड़कों को मध्य एशिया के जीवनयात्रा की चित्रावली दिखाई जाती है। इसके सिवा दीवारों पर टाँगने के अख़बार भी निकाले जाते हैं।

    तुर्कमेनिस्तान की खेती की उन्नति के लिए वहाँ काफ़ी संख्या में कृषि विद्या के विशेषज्ञ भेजे जाते हैं। दो सौ से अधिक आदर्श कृषि क्षेत्र खोले गए हैं। इसके सिवा पानी और जमीन के व्यवहार के संबंध में ऐसी व्यवस्था की गई है कि बीस हज़ार ग़रीब से ग़रीब किसान परिवारों को खेती के लिए खेत, पानी और कृषि के वाहन (बैल, घोड़े आदि) आसानी से मिल गए हैं।

    इस कम प्रजा वाले देश में 130 अस्पताल खोले गए हैं, और डॉक्टरों की संख्या है छह सौ। बुलेटिन के लेखक सलज्ज भाषा में लिखते हैं—

    हाउएवर, देअर इज़ नो अकेजन टु रिज्वॉयस इन द फ़ैक्ट सिन्स देअर आर 2,640 इनहैबिटेन्ट्स टु ईच हॉस्पिटल बेड, एंड ऐज रिगाईस डॉक्टर्स, तुर्कमेनिस्तान मस्ट बी रिलीगेटेड टु द लास्ट प्लेस इन द यूनियन।

    वी कैन बोस्ट ऑफ़ सम अटेन्मेंट्स इन द फ़ील्ड ऑफ़ मॉडर्नाइज़ेशन एंड द स्ट्रगल अगेन्स्ट ग्रॉस इग्नोरेंस, दो अगेन बीइंग ऑन ए वेरी लो लेविल ऑफ़ सिविलाइजेशन, वी हैव प्रिजर्ल्ड ए गुड मेनी कस्टम्ज़ ऑफ़ द डिस्टैंट पास्ट। हाउएवर, द रिसेण्ट लॉ, पास्ड इन ऑर्डर टु कम्बैट द सेलिंग टू वीमेन इंटू मैरिज ऐंड चाइल्ड मैरिज, हैज प्रड्यूस्ड द डिज़ायर्ड इफ़ेक्ट।

    तुर्कमेनिस्तान जैसे मरु-प्रदेश में छह साल के अंदर 160 अस्पताल खोले गए, इसके लिए ये शर्मिंदा हो रहे हैं। ऐसी शर्म देखने का अभ्यास हमें नहीं है, इसलिए हमें आश्चर्य हुआ। हमें अपने सामने बहुत-सी डिफ़िकल्टीज़ दिखाई दीं, और यह लक्षण भी दिखाई दिया कि ये जल्दी टस से मस होने वाली नहीं हैं। किंतु सवाल तो यह है कि इसके लिए हममें विशेष लज्जा क्यों नहीं दिखाई देती?

    सच बात तो यह है कि मेरे हृदय से भी इसके पहले देश के लिए काफ़ी आशा करने का साहस जाता रहा था। ईसाई पादरियों की तरह मैं भी डिफ़िकल्टीज़ का हिसाब देखकर दंग रह गया था। मन ही मन कहता था कि इतने विचित्र जातियों के मनुष्य हैं, इतनी विचित्र जातियों की मूर्खताएँ हैं, इतने परस्पर-विरुद्ध धर्म हैं, ऐसी दशा में न जाने कितने दिन लगेंगे अपने दुखों का बोझ हटाने में—अपनी कलुष-कालिमा को धोने में।

    साइमन कमीशन की फ़सल जिस आब-हवा में फली है, अपने देश के संबंध में मेरी प्रत्याशा की भीरुता भी उसी आब-हवा की उपज है। सोवियत रूस में आकर देखा कि यहाँ की उन्नति की घड़ी हमारी ही घड़ी की तरह बंद थी, कम से कम सर्वसाधारण के घरों में, किंतु यहाँ आज सैकड़ों वर्षों से बंद घड़ी में आठ-दस वर्ष चाबी भरते ही वह मज़े में चलने लगी है। इतने दिनों बाद समझ सका हूँ कि हमारी घड़ी भी चल सकती थी, किंतु चाबी नहीं भरी गई। डिफ़िकल्टीज़ के मंत्र पर से अब मेरा विश्वास उठ गया है।

    अब बुलेटिन में से दो-चार अंश उद्धृत करके चिट्ठी समाप्त करूँगाः-

    द इम्पीरियलिस्ट पॉलिसी ऑफ़ द ज़ारिस्ट जेनरल्स, ऑफ्टर द कान्क्वेस्ट ऑफ़ अजरबैजान, कन्सिस्टेड इन कन्वर्टिंग द डिस्ट्रिक्ट्स, इनहैबिटेड बाई मोहम्डेन्स इन्टू कॉलोनीज, डेस्टिंड टु सप्लाई रॉ मैटीरियल टू द सेंट्रल रशियन मार्केटस।

    याद है, बहुत दिन हुए स्वर्गीय अक्षय कुमार मैत्रेय तब रेशम की खेती के बारे में बड़े उत्साही थे, उनकी सलाह से मैं भी रेशम की खेती के प्रचार के काम में लगा हुआ था। उन्होंने मुझसे कहा था, 'रेशम की खेती में मजिस्ट्रेट से मुझे बहुत कुछ सहयोग मिला है, परंतु जितनी बार इन कौओं से सूत और सूत के कपड़े बुनने का काम किसानों में चालू करने की इच्छा प्रकट की, उतनी ही बार मजिस्ट्रेट ने उसमें बाधा पहुँचाई।'

    द एजेंट्स ऑफ़ द जार्स गवर्नमेंट वेअर रूथलेसली कैरीइंग आउट प्रिंसिपल ऑफ़ डिवाइड एंड रूल एंड डिड ऑल इन देयर पॉवर टु सो हेट्रेड एंड डिस्कॉर्ड बिटवीन द वेरिअस रेसेज। नेशनल एनीमॉसिटीज वेअर फ़ॉस्टर्ड बाइ द गवर्नमेंट एंड मोहम्डेन्स एंड आरमीनियन्स वेअर सिस्टमेटिकली इन्साइटेड अगेन्स्ट ईच अदर। द एवर रिकरिंग कन्फ्लिक्ट्स बिटवीन दीज टू नेशन्स एट टाइम्स एज्यूम्ड द फ़ार्म ऑफ़ मैस्कर्स।

    अस्पतालों की अल्प संख्या के विषय में बुलेटिन लेखक ने अपनी लज्जा को स्वीकार अवश्य किया है, किंतु एक विषय में अपना गौरव प्रकट किए बिना उनसे रहा नहीं गया :

    इट इज़ एन अनडाउटेड फ़ैक्ट, व्हिच ईविन द वर्स्ट एनीमीज़ ऑफ़ द सोवियट्स कैननॉट डिनाइ, फ़ॉर द लास्ट एट ईयर्स द पीस बिट्वीन द रेसेज ऑफ़ अजरबैजान हैज नेवर बीन डिस्टर्ब।

    भारतवर्ष के राज्य में लज्जा प्रकट करने का चलन नहीं है, गौरव प्रकट करने का भी रास्ता नहीं देखने में आता।

    इस लज्जा-स्वीकार के प्रसंग में एक बात स्पष्ट कर देना आवश्यक है। वह यह कि बुलेटिन में लिखा है—सारे तुर्कमेनिस्तान में शिक्षा के लिए प्रति व्यक्ति पाँच रूबल ख़र्च किए जाते हैं। रूबल का मूल्य हमारे देश के रुपए के हिसाब से ढाई रुपया है। पाँच रूबल का मतलब है साढ़े बारह रुपया। इसके लिए कर वसूली का कोई ज़रिया होगा अवश्य, पर वह ऐसा नहीं है जो प्रजा में अपने अंदर आत्म-विरोध पैदा कर दे।

    8 अक्टूबर, 1930

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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