महावीर प्रसाद द्विवेदी के पत्र पं. देवीवत्त शुक्ल के नाम-1
mahawir parsad dwiwedi ke patr pan dewiwatt shukl ke nam
महावीर प्रसाद द्विवेदी
Mahavir Prasad Dwivedi

महावीर प्रसाद द्विवेदी के पत्र पं. देवीवत्त शुक्ल के नाम-1
mahawir parsad dwiwedi ke patr pan dewiwatt shukl ke nam
Mahavir Prasad Dwivedi
महावीर प्रसाद द्विवेदी
और अधिकमहावीर प्रसाद द्विवेदी
पत्र सं० 1237
जुही, कानपुर
1
फा० सं० 10
11-11-15
नमस्कार,
पोस्ट कार्ड मिला। दोनो लेख भी मिले। आपने बड़ी दया की। मैं बहुत कृतज्ञ हुआ। इन लेखों को सरस्वती में निकालने की अवश्य चेष्टा करुँगा। अवकाश मिलने पर कुछ न कुछ लिख भेजा कीजिए। जहाँ तक हो सके भाषा सरल बोल-चाल की हो। क्लिष्ट संस्कृत शब्द न आने पावें। मुहावरे का ख़्याल रहे। वाक्य छोटे-छोटे हो। सबसे यथायोग्य—
शुभैषी
म.प्र. द्विवेदी
पत्र सं० 1236
जुही, कानपुर
2
फा० स० 10
18-3-17
प्रणाम,
पोस्टकार्ड मिला। 'ज्ञान शक्ति' ने फिर कुछ नहीं लिखा। शायद लिखें भी नहीं। उसके संपादक एक दिन यहाँ आए थे। उनकी अक़्ल कुछ-कुछ ठिकाने आ गई मालूम होती थी।
वह निःसंदेह जुलाब थी। जिन्होंने इसकी योजना की थी उन्होंने ख़ुद ही कह दिया था। बेचारे बुभुक्षित हैं। कान्यकुब्ज हैं। कहते थे कि सर० में कुछ लिख दिया जाए। इसी से यह गोलियाँ बना लाए थे। ये अपना काम करती हैं। इसलिए कुछ लिख दूँगा। उनका नाम ही विरेचन बटी हैं। जब तक और किसी दवा का प्रबंध न होगा, या यह मेरा पुराना Mineral Water न मिलने लगेगा तब तक कभी-कभी तीसरे चौथे एक गोली खाऊँगा। आशा है ऐसा करने से विशेष हानि न होगी। भाई साहब से पूछ देखिएगा।
धृष्टता की आपने ख़ूब कही। श्री हर्ष के ज़माने में नामी विद्वानों को नामी सरदारों की तरह ख़ास जगह बैठने को मिलती रही होगी। इसीलिए उन्होंने आसनस्थ लिखा होगा। अगर कोई विशेषता न होती तो वे ऐसा क्यो लिखते। उनके उस श्लोक में पहले पीछे का तो कुछ भी ज़िक्र नहीं। आसन के बाद ही पान मिलता हैं। श्लोक मे ताम्बूलम् पद का पहले रखा जाना छंदो नियम पालन के कारण है। आशा है आप सकुटुंब अच्छी तरह हैं।
भवदीय
म.प्र. द्विवेदी
- पुस्तक : सम्मेलन पत्रिका (पृष्ठ 1)
- संपादक : डॉ. प्रेमनारायण शुक्ल
- रचनाकार : महावीर प्रसाद द्विवेदी
- प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन
- संस्करण : 1903
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