यह रास्ता किधर जाता है

ye rasta kidhar jata hai

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा

यह रास्ता किधर जाता है

मनोज शर्मा

और अधिकमनोज शर्मा

    यह रास्ता किधर जाता है

    वह खड़ा है और

    पूछता है

    वह सड़क क्या आगे तक जाती है

    उसके साइकिल का पिछला चक्का पंचर हो गया है

    साइकिल थामे

    वह पूछता है

    कोई आगे साइकिल ठीक करेगा क्या...

    बियाबाँ है

    और जैसे बियाबाँ में होता है

    दूर-दूर तक पसरा है ख़ालीपन

    कि कोई राह नहीं सूझ रहा

    बचपन में माँ ने कहा

    जब कुछ सूझे

    तो गाना गाओ

    संगीत में होती है बहुत ताक़त

    पिता ने एक तारा दिखा

    दिशा पकड़ना सिखाया

    कुछ अध्यापक, कुछ दोस्त, कुछ पुस्तकें बताते रहे

    रास्ता भूलने लगो, तो ख़ुद में तलाशो

    पा जाओगे राह

    मींह पड़ने लगा है

    मिट्टी से उठने लगी हैं गंध मिट्टी की

    ऊपर बहुत ऊपर दो बादल हैं

    साइकिल को स्टैंड पर लगा

    आसमान की ओर चेहरा उठा

    पेशानी से टकराती बूँदों के बीच

    उसने सोचा

    यह ज़रूर कोई सपना होगा

    पिता ने जो साइकिल दी तोहफ़े में

    इतनी जल्दी कैसे पंचर होगी...

    भ्रम है यह बियाबाँ

    मास्टर जी ने कहा भी है

    बहुत क़ाबलियत है उसमें

    बनेगा आई. ए. एस. एक दिन

    आकाश नीला बन हो चुका है झक्क साफ़

    एक चील मंडराने लगी है

    सोचता है वह

    काश मैं बादल होता

    काश मींह

    काश आकाश

    काश यह साइकिल पंचर होती!

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनोज शर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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