2020 में गाँव की ओर
जैसे आँधी से उठी धूल हो
लोग शहर से गाँव चले जा रहे हैं
जैसे 1947 फिर आ गया हो
लोग चले जा रहे हैं
भूख चली जा रही है
आँधी चली जा रही है
गठरियाँ चली जा रही हैं
झोले चले जा रहे हैं
पानी से भरी बोतलें चली जा रही हैं
जिन्होंने अभी खड़े होना सीखा है
दो क़दम चलना सीखा है
जिन्होंने अभी-अभी घूँघट छोड़ना सीखा है
जिन्होंने पहली बार जानी है थकान
सब चले जा रहे हैं गाँव की ओर
कड़ी धूप है
लोग चले जा रहे हैं
बारिश रुक नहीं रही है
लोग भी थम नहीं रहे हैं
भूख रोक रही है
लोग उससे हाथ छुड़ा कर भाग रहे हैं
महानगर से चली जा रही है उसकी नींव
उसका मूर्ख ढाँचा हँस रहा है
उसका बेटा चला जा रहा है
मेरी बेटी चली जा रही है
आस टूट चुकी है
आँखों में आँसू थामे
चले जा रहे हैं लोग
बदन तप रहा है
लोग चले जा रहे हैं
चले जा रहे हैं कि कोई
उन्हें देख कर भी नहीं देखे
चले जा रहे हैं लोग
आधी रात है
आँखें आसरा ढूँढ़ना चाहती हैं
पैर थकना चाहते हैं
भूख रोकना चाहती है
कहीं छाँव नहीं है
रुकने की बित्ता भर ज़मीन नहीं है
लोग चले जा रहे हैं
सुबह तब होगी
जब गाँव आ जाएगा
रोना तब आएगा
जब गाँव आ जाएगा
थकान तब लगेगी
बेहोशी तब छाएगी
जब गाँव आ जाएगा
हाथ में बीड़ी नहीं
चाय का सहारा नहीं होगा
800 मील दूरी फिर भी
पार हो जाएगी
गाँव आ जाएगा
एक नर्क चला जाएगा
एक नर्क आ जाएगा
अपना होकर भी
जो कभी अपना नहीं रहा
वह आसमान आ जाएगा
गाँव आ जाएगा
एक दिन फिर लौटने के लिए
गाँव आ जाएगा
फिर आँधी बन लौटने के लिए
गाँव आएगा
मौत आ जाएगी
शहर की आड़ होगी
गाँव छुप जाएगा।
- रचनाकार : विष्णु नागर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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