खोड़हा छपरा
टुटही खटिया
कस परजवटि बिसारी
रिसि-रिसि चुवै पनारा
बरखा के सैलाब’म हुइगा
नद्दी जस गलियारा।
पीढ़ी बीति रही
अब लौ, ई वार न कउनौ आवा
सरकारी चपरासी तक का
हम ना द्याखै पावा।
फटहा यहै अँगरखा है बसि
एकु धराऊ कुर्ता,
लोनु भातु खाइति है
कबहूँ मछरी मिल जाती हैं।
दउआ की जस बीति गवै
तस हमरिउ कटि जाई,
छा लरिका हैं—
कामे-काजे म्याना ढ्वावति हैं
सौ, दुइ सौ—कुछु नाजु
साल मा घर लइ आवति हैं।
हम कहार हन
ई पुरवा के
कस परजवटि1 बिसारी
बासन अबहूँ तक माँजति है
मोरि बूढ़ि महतारी।
हम तौ मरि जाइति
हमका परधान जियाय लिहिन
खेतु लिखाय लिहिन हम ते
म्याना बनवाय दिहिन।
अपनि लरिकईं
चारि-चारि दिन
भूँखन मा काटा है
सौ रुपया का कर्जु रहै
हमरे दादा पर
दस सालन-मा
तउनु कर्ज हमहे पाटा है।
करिया अच्छर
भँइसि बराबर
हम ना कीन पढ़ाई।
सात छड़ाने नद्दी केरी
चारि क्वास का रेता
हम तौ पइरि न पायेन्
छोटकउनू ते कहा रहै
दुइ अच्छर तुइ पढ़ि लेता।
हम तौ रेलौ पर बइठेन है,
देखि लीन है दुनिया
जब जहाजु हमरेहे गाँव पर
हुइकै निकरति है
तारी पीटि-पीटि कूदति हैं
मोलहे-बुधई-झुनिया।
ऊँची-नीची सब जातिन का
हम काँधे पर ढ्वावा
मेहनति अउरु मसक्कति कइकै
या मरजाद निभावा।
जो दुनिया हमका ना जानै
तीका हम कस जानी
हमरे पुरवौ मा
रेडीओ-टेलीबीजनु आवा
ऊ पंचयती टेलीबीजनु
कबहुँ न द्याखै पावा।
कच्ची-पक्की ताड़ी ठर्रा
कबहूँ चिलम चलति है
जब बइठति हैं राम भरोसे
तब बइठें रमजानी।
हमरिउ कुछु इज्जति है
भइयनि
हमरिउ अपनि कहानी।
- पुस्तक : कस परजवटि बिसारी (पृष्ठ 69)
- रचनाकार : भारतेन्दु मिश्र
- प्रकाशन : पांडुलिपि प्रकाशन, दिल्ली
- संस्करण : 2000
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