गुनाह का दूसरा गीत
अगर मैंने किसी के होंठ के पाटल कभी चूमे
अगर मैंने किसी के नैन के बादल कभी चूमे
महज़ इससे किसी का प्यार मुझ पर पाप कैसे हो!
महज़ इस से किसी का स्वर्ग मुझ पर शाप कैसे हो!
तुम्हारा मन अगर सींचूँ
गुलाबी तन अगर सींचूँ
तरल मलयज झकोरों से,
तुम्हारा चित्र खींचूँ प्यास के रंगीन डोरों से,
कली-सा तन, किरन-सा मन
शिथिल सतरंगिया आँचल
उसी में खिल पड़े यदि भूल से कुछ होंठ के पाटल
किसी के होंठ पर झुक जाएँ कच्चे नैन के बादल
महज़ इससे किसी का प्यार मुझ पर पाप कैसे हो?
महज़ इससे किसी का स्वर्ग मुझ पर शाप कैसे हो?
किसी की गोद में सिर धर
घटा घनघोर बिखरा कर
अगर विश्वास सो जाए,
धड़कते वक्ष पर मेरा अगर व्यक्तित्व खो जाए,
न हो यह वासना
तो ज़िंदगी की माप कैसे हो?
किसी के रूप का सम्मान मुझको पाप कैसे हो?
नसों का रेशमी तूफ़ान मुझको पाप कैसे हो?
अगर मैंने किसी के होंठ के पाटल कभी चूमे!
अगर मैंने किसी के नैन के बादल कभी चूमे!
किसी की साँस में चुन दें
किसी के होंठ पर बुन दें
अगर अंगूर की परतें,
प्रणय में निभ नहीं पातीं कभी इस तौर की शर्तें
यहाँ तो हर क़दम पर
स्वर्ग की पगडंडियाँ घूमीं
अगर मैंने किसी की मदभरी अँगड़ाइयाँ चूमीं
अगर मैं ने किसी की साँस की पुरवाइयाँ चूमीं
महज़ इससे किसी का प्यार मुझ पर पाप कैसे हो!
महज़ इससे किसी का स्वर्ग मुझ पर शाप कैसे हो!
- पुस्तक : दूसरा सप्तक (पृष्ठ 166)
- संपादक : अज्ञेय
- रचनाकार : धर्मवीर भारती
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
- संस्करण : 2012
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.