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ठंड, खेत और उसका होना

thanD, khet aur uska hona

दीपक नवीन

दीपक नवीन

ठंड, खेत और उसका होना

दीपक नवीन

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    परसा, जो तुम्हारे खेत की मेढ़ पर

    उग आया था ज़बर्दस्ती

    उसी के पास रुक गया हूँ चुप होकर

    जहाँ धान लुआई के समय बैठकर

    तुमने मुझे बहुत बार कर लिया था याद

    उसी मेढ़ पर, तुम्हाना मन भर बैठना

    लग रही है इस समय की सबसे महत्वपूर्ण घटना

    धान की ख़ुशबू और अलाव में चमकता हुआ तुम्हारा चेहरा

    गाँव मेरे अंदर ज़िंदा है इन्ही तस्वीरों में

    ठंड में, गाँव काँप रहा है और मैं

    खोज रहा हूँ उस पुराने स्वेटर को

    जिस पर अब तक है तुम्हारी मेहंदी की ख़ुशबू

    सजना संवरना अब नहीं आता मेरे गाँव की लड़कियों को

    उन्हे देखकर मैं तुमको जी भर के कर लेता हूँ याद

    कार्तिक का महीना बीत रहा है

    तुम अब भी कार्तिक नहाने जाती होगी?

    स्रोत :
    • रचनाकार : दीपक नवीन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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