Font by Mehr Nastaliq Web

स्वाधीनता

svadhinata

अनुवाद : यतेन्द्र कुमार

पर्सी बिश शेली

अन्य

अन्य

पर्सी बिश शेली

स्वाधीनता

पर्सी बिश शेली

और अधिकपर्सी बिश शेली

    (1)

    अग्नि-शैलमालिका परस्पर देतीं उत्तर,

    प्रांत-प्रांत प्रतिध्वनित कड़क घोषों से जिनके।

    होते जागृत झंझालोड़ित सिंधु परस्पर,

    हिम के खंड चतुर्दिक ढहते शिशिरासन के,

    उठते दीर्घ घोष जब विप्लव की दुंदुभि से!

    (2)

    शिखा तड़ित की चमक झमकती एक मेध से,

    किंतु सहस्र द्वीपखंडों को द्युतिमय करती।

    भस्मसात है एक नगर ही भूमिकंप ले,

    किंतु एक रात में भयार्त्त वह कंपन भरती—

    घोर गर्जना भू-अंतर में त्रस्त विहरती।।

    (3)

    किंतु तड़ित से तेरे दृग की शिखा प्रखर है,

    भूमिकंप के डग ले तेरे पग हैं द्रुततर।

    सिंधु-रोष को बधिर,अंध ज्वालामुखियों को—

    करती सत्वर और अंशु की ज्योति प्रखरतर—

    लगती धुँधियाती सीली तेरे समक्ष पर!

    (4)

    दिनकर-आतप, लहर और पर्वत-पठार से,

    झंझा, वाष्प-पटल से ही छनकर आता है।

    प्राण-प्राण से, राष्ट्र-राष्ट्र से और नगर से—

    कुटिया तक, तेरा प्रभात ही मुस्काता है।

    और निरंकुश, दास, रजनि की छायाएँ अब,

    तेरे भोर उजाले के रथ के पीछे सब।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शेली
    • संपादक : यतेन्द्र कुमार
    • रचनाकार : पर्सी बिश शेली
    • प्रकाशन : भारत प्रकाशन मंदिर, अलीगढ़

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY