मणिकर्णिका का शव
यह जीवन अधजिये और अनजिये का शोक है!
इतना कुछ अनजिया है कि
आने वाले दिन बहुधा मन में
अतीत का-सा मोह जगाने लगते हैं
लेकिन आने वाले दिनों में अतीत-सी धूप कहाँ!
और इतना कुछ अधजिया है कि
बीते हुए दिन भविष्य की
लालसा से हो जाते हैं
लेकिन बीते हुए दिनों में भविष्य-सा अवकाश कहाँ?
कितना कुछ था जो करना था
किंतु आने वाले दिन उस सबके लिए
अतीत की तरह नाकाफ़ी हैं!
और कितना कुछ है जो इतने अधूरे मन से किया है
कि मुझे अपने अतीत के लिए अपने आगत-सा
अछोर प्रसार चाहिए!
मैं आगे बढ़ने से पहले
पीछे लौट जाना चाहता हूँ
अधूरेपन की सभी गाँठों को खोलकर
मुक्त हो जाना चाहता हूँ
और दुःख केवल यह नहीं है
कि पीछे लौटकर जाना संभव नहीं
संताप यह भी है कि लौटने की मियाद भी
इतनी सर्वग्राही कि ठहराव के भँवर में
निगल जाती है!
यह जीवन अधजिये और अनजिये का शोक है!
मैं मणिकर्णिका का शव हूँ
जल और अग्नि ने जिसे
आधा खाकर छोड़ दिया
और अब विगत-वंचित, वर्तमानहीन,
अनागत के प्रेत-सा
समय की उस धार में तैरता हूँ
जो मेरा नहीं!
- रचनाकार : सुशोभित
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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