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सहगान

sehgaan

अनुवाद : गिरधर राठी

दिन खिसकाते जाते हैं अपनी दीवारें शहर-भर में।

सफ़ेद दीवारें कम से कमतर होती जाती हैं,

उनका उजास तीक्ष्ण से तीक्ष्णतर।

तादाद बढ़ती जाती है नीली दीवारों की।

दीवार-दर-दीवार हम खिसकते हैं उनके साथ…

रह चुकते हैं हम तमाम मकानों में

टोह चुकते हैं तमाम सड़कें ताहद्द

और निकलते हैं उस पार

जहाँ दीवारें हैं तमाम नीली और नक्षत्रों से ढँकीं

जहाँ पहले खिले रहते थे धूप में गुलाब।

स्रोत :
  • पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 279)
  • संपादक : अशोक वाजपेयी
  • रचनाकार : हेनरिक नॉर्डब्रांट
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
  • संस्करण : 1989

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