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हे भारत-भूमि, तुम्हें (दासता की) बेड़ियो से मुक्त, स्वतंत्र देखकर हम

सभी अत्यंत प्रसन्न होते हैं।

तुमने विदेशियों से अनेक वर्षों तक कष्ट भोगकर स्वराज्य पाया है।

लोगों से घिरे यह बुद्धिमान् जवाहर तुम्हारे नेता हैं।

सारे संसार के लोगों के माननीय, विद्वान् राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति हैं; वह

सौ वर्ष जिएँ।

जो प्राणी तुम्हारे लिए मरे हैं, उन्हें सदैव स्मरण रखो। हे माता,

उनका कल्याण करके उन्हें मुक्ति प्रदान करो!

यहाँ सभी पक्षों को मिलकर तुम्हारी सुरक्षा की चिंता करनी चाहिए,

परस्पर वैर छोड़कर अपने देश का कार्य करना चाहिए।

जो सत्य और अहिंसा में निरत रहते थे और जिनका हृदय करुणा से

भरा रहता था, वह तुम्हारे महात्मा गाँधी स्वर्ग सिधार गए।

अपने योग-धर्म एवं परमात्म-तत्त्व के ज्ञाता माननीय अरविंद घोष

को, हाय, क्या भुला दिया गया है?

तुम्हारे साम्राज्य में स्वधर्म की रक्षा हो, स्वदेश की रक्षा हो तथा

देववाणी संस्कृत की रक्षा हो।

हे माता, चिर काल के बाद जब स्वतंत्रता मिल गई है, तब इस

राष्ट्रभूमि में देव-वंदनीय संस्कृत भाषा की भी अभिवृद्धि हो।

तुम्हारे राज्य में किसी प्रकार का दुःख, व्याधि (शारीरिक रोग), आधि

(मानसिक पीड़ा) या उपाधि (छल-कपट) हो। पृथ्वी पर जल, भोजन और

वस्त्र हर समय प्राप्त होते रहें।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 698)
  • रचनाकार : जयनारायण रामकृष्ण पाठक
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी

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