Font by Mehr Nastaliq Web

सहकारी खेती

sahkari kheti

श्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

और अधिकश्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

    चाहौ जो पैरन खड़ा होबु,

    सहकारी खेती करौ यार।

    कब तलक बिदेसन के बल पर,

    ककुवा, पूड़ी-पकवान बनी॥

    कब तक बिदेस की मैदा ते,

    होली केरा सामान बनी।

    जो चाहौ पैदावार बढ़ै औ,

    बढ़ै देस का रोजिगार॥सहकारी...॥1॥

    जो चाहौ अपने गाँवन मा

    बिगहा बाइस मन होइँ धान।

    जो चाहौ जर्जर देस अपन

    बनि जाइ बिदेसन के समान।

    चाहौ जो अपने चरनन पर,

    यहु सारा जग होवै निसार॥सहकारी...॥2॥

    जो चाहौ भारत स्वर्ग बनै,

    गाँव बनैं सब इन्द्रासन।

    धरती भर मा सिरमौर बनै,

    जो चाहौ तुम अपना आसन।

    जो चाहौ जुग जुग तक लेवै,

    हिमगिरि पर अपना ध्वज हिल्वार॥सहकारी...॥3॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : घास के घरउँदे (पृष्ठ 80)
    • रचनाकार : श्यामसुंदर मिश्र ‘मधुप’
    • प्रकाशन : आत्माराम एण्ड संस, कश्मीरी गेट, दिल्ली
    • संस्करण : 1991

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY