सफ़र से लौटते हुए

safar se lautte hue

अनुवाद : वर्षादास

सुरेश दलाल

सुरेश दलाल

सफ़र से लौटते हुए

सुरेश दलाल

और अधिकसुरेश दलाल

    ट्रेन की खिड़की से देखता हूँ

    काँच का आकाश

    बिना पंखियों के

    वृक्षों की परिषद्

    आकाश में शाम की दरार पड़ गई है।

    अंधकार के उतरने की ही देर है अब,

    फिर एक वृक्ष

    दूसरे वृक्ष को क्या पहचान पाएगा?

    मेरे कंपार्टमेंट में

    हम तीन मिडिल एजेड मुसाफ़िर

    रेल की गति से विचार दौड़ते हैं

    या विचार की गति से रेल?

    अंदर की आर्द्र वाणी

    होंठ को चुप रहने को मजबूर करती है।

    दोपहर को चल पड़ी ट्रेन में

    रात भर सफ़र करेगी,

    बिस्तर

    पसरने की प्रतीक्षा करता हुआ पड़ा है

    कोने में।

    सिगरेट पीने से उदासी घटती हो तो-

    —वह भी पी लूँ!

    धुआँ...

    उसमें दिखता तुम्हारा चेहरा,

    बेटी की आवाज़...

    सिगरेट बहुत पीने के बाद

    गले में जलन होती है—

    इंतज़ार बहुत करने के बाद

    तुम या तुम्हारा फ़ोन आए ऐसी।

    तुम्हारे लिए व्यवस्थित रखी वस्तुएँ

    बैग में व्यवस्थित पड़ी हैं।

    और इतने बडे़ कंपार्टमेंट में

    मैं व्यवस्थित नहीं हूँ।

    व्यवस्थित हो जाना है किसी भव में :

    अंधकार के उतर आने की ही देर है अब।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक गुजराती कविताएँ (पृष्ठ 19)
    • रचनाकार : सुरेश दलाल
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2020

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