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सच हमेशा सच ही रहता है ना

sach hamesha sach hi rahta hai na

सीमा असीम सक्सेना

अन्य

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सीमा असीम सक्सेना

सच हमेशा सच ही रहता है ना

सीमा असीम सक्सेना

और अधिकसीमा असीम सक्सेना

    इतना हल्की हो जाती हूँ

    कि उड़ने लगती हूँ हवा में

    छू आती हूँ आसमाँ के आख़िरी छोर को

    और कभी इतना भारी कि

    डूब जाती हूँ समुंदर की सतह तक

    बैठ जाती हूँ वहीं कहीं दुबक कर

    उबरना ही नहीं चाहती

    कभी चलती रहती हूँ कूदते फलांगते

    और कभी मनों भारी हो जाते हैं पाँव

    जो ठिठक जाते हैं

    आगे बढ़ना ही नहीं चाहते

    कभी इतना हँसता खिल-खिलाता है मन

    कि हर तरफ़ फूल खिले नज़र आते हैं

    और कभी इतना उदास हो जाती हूँ

    कि अँधेरे में खो जाना चाहती हूँ

    क्योंकि मैं अपने सच को पल भर को बिसरा ही नहीं पाती

    नहीं भुला पाती हूँ मैं सच को

    प्रिय क्या तुम सच नहीं हो

    बताओ

    बोलो ना

    कि सच हमेशा सच ही रहता है ना?

    स्रोत :
    • रचनाकार : सीमा असीम सक्सेना
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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