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बजार

कानऽ के छौ तँ

कानि ले अखने,

तोहर नोर

शायद फेर तोरा लेल

नहि भऽ सकतौ उपलब्ध।

दुनिया भऽ गेल छै बजार

जतऽ बिकाइ छै

सब किछु,

इच्छा, भावना

मोह-ममता

नोर सेहो।

हँ, दुनिया भऽ गेल छै बजार

तेँ कनबाक छौ तँ

कानि ले अखने,

काल्हिसँ तोहर नोर

सेहो लगतौ बिकाय

तोँ चाहें नहि चाहें

मुदा बिकयबे करतौ तोहर नोर।

बजारके नहि रहै छै मतलब

दरेगसँ

हँ, जँ रहौ कैंचा तोरा लग

तँ कीनि अवश्य सकैत छें नोर

कानक लेल किछु कालक मोहलत,

तेँ आइये कानि ले जते कानऽके छौ।

ओना तोरा लग

विकल्प सेहो छौ दोसर

जे तोँ कनबे नहि कर

कऽ ले एकटा निश्चय

कानब ताधरि नहि

जाधरि पहुँच नहि जायत

बजार मसान घाट तक।

नहि तँ तोँ तखने कनबे

जखन तोरा कनओतौ।

कियैक तँ

काल्हिसँ

बिका जेतौ

तोहर नोर,

तोहर अपन सब किछु

बिकाइत रहतौ

दुनियाक बजारमे

तोँ

कानि नहि सकबें,

मोन हेतौ तैयो

कारण

लोक कनबो करै छै

मनेसँ

बजार

मनोके कीन लै छै

बेच दै छै

तेँ कानि ले अखने

कानऽके छौ तँ

कि खाले किरिया

कनबे नहि करब।

स्रोत :
  • पुस्तक : समय गीत (पृष्ठ 21)
  • रचनाकार : रोशन जनकपुरी
  • प्रकाशन : मैथिली विकास कोष, जनकपुर
  • संस्करण : 2013

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