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रात में अँधेरी सड़कों पर

raat mein andheri saDkon par

अनुवाद : कमलेश

ओसिप मंदेलश्ताम

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ओसिप मंदेलश्ताम

रात में अँधेरी सड़कों पर

ओसिप मंदेलश्ताम

और अधिकओसिप मंदेलश्ताम

    र' रात में अँधेरी सड़कों पर, भागते बनखोर

    घोड़ों के बीच

    काली धुरी वाली स्लेज पर मैं जा रहा हूँगा

    आल्डर की फूलों लदी एक टहनी के लिए

    स्लेज की टोपी पर खिंच रही बर्फ़ के लिए

    घूमते पहियों की, चारों ओर, अंतहीन खर-

    खराहट के लिए

    याद में घुमड़ती है पांगर की लट, और जैसे

    ग़लती से

    चल गई गोली के बारूद का धुआँ

    छोड़ जाता है ज़ुबान पर चींटियों-सा तेज़ाबी,

    हल्का तीख़ापन

    मेरे ओठों पर पड़ जाती है कहरुबे-सी सूखी

    परत

    इन क्षणों में हवा भी लगती है भूरी

    दृष्टि का छोर पहन लेता है

    मृदुता का और सेब-सी गुलाबी त्वचा के

    मेरे सारे अनुभवों का परिधान

    स्लेजों में जुते घोड़े भागते, खुरचते रहते हैं बर्फ़,

    उनके छोड़ दृश्य पट पर

    आसमान की तीख़ी किरणें चमकती हैं

    सड़क पर टापें प्यानों के अवरुद्ध परदों की

    तरह बजती हैं

    रोशनी केवल तारों के कँटीले असत्य से आती है

    ज़िंदगी बहती रहती है स्लेज की टोपी पर

    खिंच रही बर्फ़ की तरह, और

    कोई नहीं सुनने को—रात में अँधेरी सड़कों पर

    भागते बनखोर—घोड़ों के बीच

    स्रोत :
    • पुस्तक : सूखी नदी पर ख़ाली नाव (पृष्ठ 291)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : ओसिप मंदेलश्ताम
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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