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प्रिय मैरिलिन मनरो

priy mairilin manro

अनुवाद : सुरेश सलिल

टूआ फ़ोर्स्ट्राम

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टूआ फ़ोर्स्ट्राम

प्रिय मैरिलिन मनरो

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    इधर मैं तुम्हारे बारे में अख़बार में फिर पढ़ती रही हूँ।

    बेवर्ली हिल्स के अपने घर के बाहर खड़े होकर तुमने कहा

    कि तुम होटल के चालीस सुनसान कमरों का योगफल हो।

    तुम भड़कीले कपड़े पहने थी

    तुम्हारे केश भी किसी बादल के जैसे चमकदार थे।

    मैं कभी किसी होटल में नहीं ठहरी।

    मैं तुम्हें इसलिए लिख रही हूँ

    कि एक व्यक्ति को एक ख़ास तरह के लोगों से बचकर रहना चाहिए

    जहाँ तक संभव हो

    वह सब कुछ जो वे देखते हैं उन्हें उसकी ज़रूरत है।

    उन्हें तुम्हारी ज़रूरत है

    क्योंकि तुम ख़ुशी से भरपूर और किसी बच्चे जैसी निश्छल हो।

    जानती हो कि लोग अटार्नी जनरल के बारे में क्या कहते हैं?

    राष्ट्रपति और ख़ुद तुम्हारे बारे में भी?

    यक़ीन मानो; मेरा आशय दूसरों की ज़िंदगी में

    ताकझाँक करने का नहीं है

    लेकिन मैं तुमसे बड़ी हूँ

    और देखने-सुनने में कुछ ख़ास नहीं :

    रात और भोर के बीच

    कोई तुम्हारी जान ले लेगा।

    सुबह वे अपनी बीवी और बच्चों के साथ चर्च जाएँगे।

    यह मेरा काम नहीं हैं; बेशक

    इस तरह की आशंका अख़बार में ज़ाहिर की गई है।

    मेरा आशय यह है

    कि तुम्हारा जीवन मूल्यवान है

    तुम वह कुछ हो जो हम सबके भीतर है।

    सदा से तुम मृत्यु के बारे में बातें करती आई हो,

    लेकिन कभी भी उस गहरे अँधेरे में नहीं ढकेली गई

    जो लोगों को रात में डुबो देता है

    और निर्ममतापूर्वक राख में बदल देता है।

    लिहाज़ा अधनंगी पोशाकों को अलविदा कर लो

    और गाते वक़्त की फूहड़ सरगोशियों को भी।

    सूनी राहों की चहलक़दमी और अँधेरे से बचो।

    तस्वीरें हरियाली से इतनी ज़्यादा घिरी होती हैं

    कि तुम्हारा घर बमुश्किल ही नज़र आता है।

    क्या तुम्हें बाग़बानी का शौक़ है?

    स्रोत :
    • पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 480)
    • रचनाकार : टूआ फ़ोर्स्ट्राम
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2003

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