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प्रेमक तीन आखर

premak teen akhar

अशोक

अन्य

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अशोक

प्रेमक तीन आखर

अशोक

और अधिकअशोक

    (एक)

    हमर चंचल लेखनी

    रचि रहल अनुपम शब्द

    गढ़ि रहल सुन्दरताक पाँती।

    ओह, नहूँ-नहूँ चलिते

    भरिसक आखर देखि देखि

    भऽ गेल अछि चंचल।

    लुप्त भऽ गेलैक एकर स्थिरता

    एकदम अस्थिर भऽ गेल हमर लेखनी।

    संतोष अछि मुदा हे हमर आखर।

    कतबो झटकारिकऽ चलैत अछि

    मोतिये सनक पाँती निकलैत अछि

    एहि लेखनीसँ

    तोहर आँखिक भाषा पढ़ि।

    (दू)

    हमर मोनक आइनामे

    तोहर प्रतिबिम्ब

    खुजल केश फुलायल गाल

    नम्हर नम्हर रसायल आँखि।

    मोन होइत अछि घोटि लिऔ तोरा।

    अयना के पीसि कऽ चीबा जाइ

    कऽ ली अपन हृदय लहूलहुआन

    पीसि ली एक मधुर दर्द।

    (तीन)

    एतेक लग किएक अबैत छेँ

    की कने दूरसँ गप्प नहि होइछ?

    दू प्रश्न

    तीन उत्तर

    सुनि ले फराकेसँ।

    आ...

    सभ दिन जकाँ अपन नूआ सम्हारि

    पैघ डेग दैत चल जो

    एहि बँसबिट्टीसँ बाहर...।

    स्रोत :
    • पुस्तक : चक्रव्यूह पसरैत (पृष्ठ 49)
    • रचनाकार : अशोक
    • प्रकाशन : नवारम्भ
    • संस्करण : 2023

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