मन में भरा प्रेम का अथाह सागर
जब हिलोरें मारता है तब एक लहर आकर
आँखों से टकरा जाती है
और उस वक़्त बह उठते हैं प्रेमाश्रु
मैं व्याकुल हो अपनी आँखें कसकर
बंद कर लेती हूँ ताकि कोई आँसू ज़मीं पर न गिर जाए
मैं अपनी बाहें आसमाँ की तरफ़ उठा लेती हूँ
लबों को बंद करते हुए
जुबाँ से न निकल जाए कोई शब्द
कि ज़माने में कान लगा कर सुनने वाले बहुत हैं
सुनकर हँसने वाले
मज़ाक बना देने वाले
खिल्ली उड़ाने वाले
लेकिन मुझे क्यों हो कोई परवाह
और क्यों हो तुमसे कोई शिकायत
कि वे जो अपने ही तो हैं
गैर कौन है कोई भी तो नहीं
सब ख़ुश तो हैं
तुम भी यूँ ही सबके साथ हँसना खिल-खिलाना
हाँ मायने रखता है मेरे लिए
तुम्हारा ख़ुश रहना
कहीं भी और
कभी भी प्रिय!
- रचनाकार : सीमा असीम सक्सेना
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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