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प्रत्येक व्यक्ति एक दुनिया है

pratyek vyakti ek duniya hai

अनुवाद : सुरेश सलिल

गुन्नार एकेलोफ़

अन्य

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गुन्नार एकेलोफ़

प्रत्येक व्यक्ति एक दुनिया है

गुन्नार एकेलोफ़

और अधिकगुन्नार एकेलोफ़

    प्रत्येक व्यक्ति एक दुनिया है दृष्टिहीन जीवों से आबाद,

    जो उन पर शासन करने वाले, अर्थात् 'सोऽहं’ के विरुद्ध

    दिशाहीन विद्रोह में लिप्त हैं।

    प्रत्येक आत्मा में सहस्रों आत्माएँ क़ैद हैं,

    प्रत्येक दुनिया में सहस्रों दुनियाएँ छिपी हैं,

    और ये दृष्टिहीन-निचली दुनियाएँ पूर्णजन्मा होते हुए भी

    वास्तविक और सजीव हैं, उतनी ही वास्तविक, जितना 'सोऽहं’।

    और हम शासकगण, हमारे अपने भीतर निहित

    सहस्रों संभावनाशील जीवों के अधिपति,

    हम स्वयं भी प्राण हैं किन्हीं और बड़े जीवों के अधीन,

    जिनके व्यक्तित्व के बारे में हम उतने ही अल्पज्ञ हैं

    जितना हमारा नियंता अपने नियंता के बारे में।

    उनकी प्रीति से और उनकी मृत्यु से हमारी अपनी भावनाओं ने

    वर्ण प्राप्त किया है,

    जैसे, दृष्टि से परे, दूर

    जहाँ सांध्यवेला में सागर सोया हुआ है एकदम शांत-क्षितिज के नीचे,

    किसी बड़े जहाज़ का गुज़रना।

    जब तक कोई लहर तट की ओर उमड़कर हम तक नहीं पहुँचती

    हम उस जहाज़ के बारे में कुछ नहीं जानते होते।

    पहले एक, फिर दूसरी, और फिर बहुत-सी उफ़नती लहरें

    तट से तब तक टकराती, उसे प्रक्षालित करती और खंडित होती रहती हैं

    जब तक कि सब कुछ पूर्ववत् नहीं हो जाता।

    किंतु क्या तब भी सबकुछ पूर्ववत् हो जाता है?

    इसी तरह, जब किसी बात से, हमें यह पता चलता है

    कि कूच शुरू हो चुकी है

    कि कुछ संभव जीव मुक्त हो गए हैं,

    छायाभास सरीखे हम, एक विलक्षण बेचैनी से जड़वत् हो जाते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 224)
    • रचनाकार : गुन्नार एकेलोफ़
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2003

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